



मिलावटी दूध की रोकथाम के खिलाफ भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ सख्त
रोकथाम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी कुछ साल पूर्व स्वामी ने जनहित याचिका
जनहित याचिका पर सुप्रीम निर्देशों के बावजूद केन्द्र और राज्य सरकारों ने नहीं लिया संज्ञान
जिस पर स्वामी तीर्थ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना को लेकर दायर की याचिका
NAVEEN PANDEY, हरिद्वार: मिलावटी दूध के खिलाफ एक संत की पहल पर सुप्रीम अदालत ने सख्ती दिखाई है। हरिद्वार के संत की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मिलावटी दूध की रोकथाम के लिए कुछ वर्ष पहले आदेश दिए थे लेकिन इस ओर गंभीर कदम केन्द्र सरकार, राज्यों और फूड सेफ्टी और स्टेंडर्ड आथरिटी आफ इंडिया यानि एफएसएसआई सहित संबंधित विभागों की ओर से नहीं उठाया गया। जिस पर संत ने हाल ही में माननीय न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन मानते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच में अवमानना दाखिल कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित दो अन्य न्यायाधीशों ने संज्ञान लेते हुए राज्यों के मुख्य सचिवों, एफएसएसआई सहित संबंधित विभाग को निर्देश जारी किया है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका की अवमानना को लेकर हरिद्वार के संत भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने अपने अधिवक्ता विवेक मिश्रा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और दो अन्य न्यायाधीशों ने फूड सेफ्टी और स्टैंडर्डस आथोरिटी ऑफ इण्डिया व विभिन्न राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किए हैं। भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने बताया कि हमने दुग्ध उत्पादों की गुणवत्ता को सुधारने और मिलावटी दुग्ध उत्पादों पर रोक लगाने की मांग को लेकर पीआईएल दायर की थी, जिस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोकथाम के लिए सम्बन्धित विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश पूर्व में दिये थे लेकिन माननीय न्यायालय के दिशा-निर्देशों का राज्य सरकारों एवं एफएसएसआई और भारत सरकार ने अनुपालन नहीं किया। जिस पर अपने अधिवक्ता विवेक मिश्रा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका संख्या-4296/2022 दाखिल की गई। स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने बताया कि इस मामले में 17 फरवरी 2023 को सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायधीश Chief Justice DY Chandrachud, Justice PS Narasimha and Justice JB Pardiwala ने फूड सेफ्टी और स्टेन्डर्ड्स आथोरिटी ऑफ इण्डिया व विभिन्न राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी कर निर्देश दिए हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीशों ने यह स्पष्ट किया कि नोटिस को अवमानना के रूप में नहीं माना जाएगा और कहा कि एफएसएसएआई 5 अगस्त 2016 के सुप्रीम अदालत के निर्देशों को विधिवत लागू करने के लिए अपनी वैधानिक शक्तियों का गंभीरता से प्रयोग करे।