



जूना अखाड़े के संत स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती ने की घोषणा
वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भदौरिया के सामने दिया शपथ पत्र
ऋषिकेश एम्स को ब्रहृमलीन होने पर देहदान का दिया शपथ
NAVEEN PANDEY, हरिद्वार: देशहित और जनकल्याण को लेकर संतों का बड़ा योगदान रहा है। सत्य और धर्म के रास्ते पर चलने का मार्गदर्शन इन्हीं संतों के सत्संग से इंसानों को मिलता है। लेकिन कुछ संत इससे भी कहीं आगे जाकर ऐसा कार्य कर जाते हैं जिनका सम्मान देश ही नहीं पूरी मानवता करती है। ऐसी मिसाल नागा संयासियों के सबसे बड़े अखाड़े दशनाम जूना अखाड़े के संत ने पेश की है। जिसकी मिसाल सदियों तक दी जाती रहेंगी।

हरिद्वार के दशनाम जूना अखाड़े के संत स्वामी महेश्वरानंद सरस्वती ने ये घोषणा की है कि उनके ब्रहृमलीन होने के बाद उनके पूरे शरीर को ऋषिकेश एम्स जनपद देहरादून को दान कर दिया जाए। ताकि उनके शरीर का प्रत्येक अंग देश हित में काम आ सके। उन्होंने ऐसी घोषणा हरिद्वार के वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भदौरिया की मौजूदगी में घोषणा पत्र भरकर की। संत महेश्वरानंद का मानना है कि उनका शरीर आने वाली पीढ़ियों के काम, उनकी पढ़ाई-लिखाई के रूप में आ सकेगा। जाहिर है जूना अखाड़े के संत स्वामी महेश्वरानंद की इस मिसाल को लेकर संत जगत में ही नहीं दुनिया में चर्चा होगी। यहां यह बताना जरुरी है कि संत जब ब्रहृमलीन होते हैं तो कई तरह की परंपराओं के साथ उनके पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई दी जाती है। जिसमें जल में ब्रहृमलीन संतों को प्रवाहित किया जाता है। फिर कुछ संतों को भू-समाधि दी जाती है, लेकिन वक्त के साथ संतों की सोच और परंपरा में भी बदलाव आया। कुछ अखाड़ों के संतों ने पहल की कि संतों को जल में समाधि नहीं दी जाएगी, इसके पीछे तर्क यह था कि उनके मृत शरीर की दुदर्शा होते देखा गया। उनके शरीर को जल से खींचकर कुत्ते आदि खा जाते थे।

महाकुंभ 2010, प्रयाग कुंभ आदि में इस पर काफी बहस हुई। फिर संतों ने काफी हद तक इस परंपरा को बंद कर दिया है। हालांकि भू-समाधि अब भी दी जाती है। इस विषय पर भी काफी बहस के बाद कुछ अखाड़ों और संतों ने इस परंपरा में बदलाव किया और वे अग्नि को पार्थिव शरीर अर्पित करने को तैयार हुए। जिसकी चारों ओर सराहना हुई। अब इन सबके बीच स्वामी महेश्वरानंद कई कदम आगे निकल चुके हैं। उन्होंने फिर एक बार संतों के बीच इस विषय को लेकर चर्चा छेड़ दी है कि जो संत जगत का कल्याण करते हैं, उनके पार्थिव शरीर को क्या ऋषिकेश एम्स जैसी संस्थाओं को दान नहीं दिया जा सकता है ताकि पूरी मानवता का कल्याण हो सके। फिलहाल स्वामी महेश्वरानंद के इस मिसाल को सदियों तक याद रखा जाएगा।