उत्तराखंड की पहाड़ियों पर रेल दौड़ाने की परियोजना 41 प्रतिशत पूरी, अब महज 59 % पर सपना हो जाएगा साकार

ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन की परियोजना को रेलवे और मुख्यमंत्री ने ट्विटर पर शेयर किया
भौगोलिक चुनौतियों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तेज गति से चल रहा है परियोजना का काम
125.20 किलोमीटर परियोजना में 12 स्टेशनों पर रुकेगी रेल, देश की सबसे बड़ी टनल परियोजना में शामिल

BY NAVEEN PANDEY

दैनिक समाचार, देहरादून:  उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रेल का सपना 41 प्रतिशत साकार हो गया है। 2024 तक 59 प्रतिशत कार्य संपूर्ण होने की संभावना है। भौगोलिक परिस्थितियों और विपरीत मौसम के बावजूद तेजी से ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन मार्ग पर कार्य चल रहा है। यह परियोजना ना केवल पर्यटन, रोजगार को गति देगा बल्कि भारत-चीन बार्डर के मदृदेनर सामरिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। रेलवे ने सुरंग सहित अन्य निर्माण की खुशियां अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर की है। रेलवे ने माना है कि अब तक 41 प्रतिशत तक कार्य पूर्ण हो चुका है। तीन महत्वपूर्ण रेलवे ब्रिज, तीन सड़क पुल और 25 छोटे-बड़े स्टेशनों की प्रगति पर काम तेजी से चल रहा है। यह रेल परियोजना जनता को 2024 दिसंबर तक समर्पित हो सकती है। परियोजना में देश की सबसे बड़ी रेलवे टनल बन रही है। जिससे रेल गुजरेगी और परियोजना के पूर्ण होने के बाद ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक सड़क मार्ग से लगने वाली दूरी छह से सात घंटे की बजाय दो से ढ़ाई घंटे की रह जाएगी। विश्व प्रसिद्ध चारों धाम को जोड़ने के मकसद से इस परियोजना को गति दी गई।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन को चारधाम से कनेक्ट करने की सोच को लेकर 1996 में सर्वे किया गया। इसके कुछ साल बाद प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई। जिसकी जिम्मेदारी रेल विकास निगम ने संभाली। यह प्रोजेक्ट करीब 16.200 करोड़ से अधिक का है। रेल परियोजना के तहत 125.20 किलोमीटर ब्राडग्रेज की सिंगल पटरी तैयार होगी। ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग तक 12 जगहों पर रेलगाड़ियों का ठहराव होगा। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक महज ढ़ाई घंटे में पहुंचा जा सकेगा। यह रेलमार्ग देहरादून, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली जनपद को सीधे तौर पर जोड़ती हुई जाएगी। अहम बात इस परियोजना की यह है कि देश का सबसे लंबा रेलवे टनल इसी प्रोजेक्ट में शामिल है। जिसमें 15.1 किलोमीटर सबसे लंबी टनल से रेलगाड़ी गुजरेगी। इस परियोजना में 17 टनल, 35 ​​​ब्रिज और 12 स्टेशनों का निर्माण होना है। जाहिर है यह किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन भारत सरकार की सोच और सामरिक ​दृष्टिकोण के मदृदेनजर मोदी सरकार ने इसे अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल करके इसे तेज गति दी।

दुर्गम प​हाड़ियों पर आसान नहीं था रेल का सपना
दुर्गम पहाड़ियों और विपरीत मौसम के बीच रेल लाइन को बिछाना आसान काम नहीं था। लेकिन मजबूत सोच और इरादे के बीच इस कार्य को न केवल अंजाम दिया गया बल्कि इसे गति देते हुए 41 प्रतिशत तक कार्य को पूरा कर लिया गया है। जिस तेजी से यह काम चल रहा है, उससे यह उम्मीद बंधी है कि 2024 दिसंबर तक यह परियोजना जिसका लक्ष्य निर्धारित है पूरी कर लेगी। इस परियोजना के लिए वैसे तो कई बड़ी चुनौतियां थी लेकिन देवप्रयाग से लछमोली के बीच करीब 15.1 किलोमीटर लंबी रेल सुरंग को तैयार करना आसान नहीं था।

125 किलोमीटर में 105 किलोमीटर पुल और सुरंगे
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना के 125.20 किलोमीटर के बीच 105 किलोमीटर रेल खंड में 35 पुल, 17 सुरंगे और देश की सबसे लंबी रेल टनल 15.1 किलोमीटर भी शामिल है। जाहिर है यह परियोजना किस कदर जटिल थी।

यह है ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के बीच के रेलवे स्टेशन
ऋषिकेश, मुनिकीरेती, शिवपुरी, मंजिलागांव, साकनी, देवप्रयाग, कीर्तिनगर, श्रीनगर धारी देवी, रुद्रप्रयाग, घोलती, गोचर और कर्णप्रयाग।

Leave a Comment

error: Content is protected !!