आखिर ‘ओपीएस’ से क्यों नहीं बना पाएं दलों पर ‘दबाव’

आम आदमी पार्टी को छोड़कर, प्रमुख दलों ने अपने घोषणा पत्र में नहीं दी जगह
चार लाख कर्मियों के परिवार से जुड़े 18 लाख मतदाताओं का प्रतिशत करीब 22
कर्मियों के अलग-अलग सियासी दलों में रुचि और विचारधारा का उठाया गया फायदा


BY NAVEEN PANDEY

देहरादून/हरिद्वार: प्रदेश के चुनावी महासमर में सूबे के चार लाख कर्मचारी और पेंशनर किसी भी चुनावी गणित को बदलने की ताकत रखते हैं लेकिन वो तब, जब वे एक कर्मी हों न कि सियासी दलों में बंटे हुए हों। यह ऐसा समूह है, जो एक बड़े मतदाता वर्ग को प्रभावित करता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आम आदमी पार्टी को छोड़कर, भाजपा, कांग्रेस सहित प्रमुख राजनीतिक दलों ने इनकी मांगों को अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया। जबकि कर्मी दिल्ली से लेकर देहरादून तक सड़क पर आंदोलन कर चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि विपक्षी दल कांग्रेस ने तो वायदा भी किया था लेकिन जब घोषणा पत्र आया तो उनकी मांगों का कोई जिक्र नहीं था। बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री ने केन्द्र को पत्र भी लिखा था पर इनके घोषणा पत्र में भी नतीजा सिफर रहा।
जी हां, हम बात कर रहे हैं राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की चल रही लड़ाई की।
उत्तराखंड में सबसे अधिक कामगार सरकारी सेवाओं में हैं। प्रदेश की सरकारी सेवाओं में तकरीबन 2.50 लाख सरकारी कर्मचारी है। शिक्षकों की संख्या 60 हजार के आसपास है। इतनी ही संख्या में पेंशनर हैं। निकाय कर्मियों की संख्या भी 50 हजार से अधिक है, जबकि उपनल, पीआरडी, होमगार्ड व संविदा कर्मियों की संख्या 40 हजार से अधिक है। यह कुल संख्या 4.50 लाख से अधिक है। यदि एक कर्मचारी के पीछे उसके परिवार के छह व्यक्तियों को भी जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 18 लाख के आसपास बैठता है। यह संख्या कुल मतदाताओं का तकरीबन 22 प्रतिशत है। बावजूद राजनीतिक दलों ने अपनी घोषणा पत्र में जगह नहीं दी। ये माना जा था कि चुनाव के घोषाणा पत्र या किसी राजनीतिक दल के बड़े नेता की ओर से ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने को लेकर आश्वसन दिया जाएगा पर चार लाख कर्मियों को पार्टियों ने हाशिये की ओर धकेल दिया। दरअसल, यूं तो सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली में बंधे होने के कारण किसी राजनीतिक दल की कर्मी सदस्यता नहीं ले सकते, लेकिन कई संगठन ऐसे हैं जो विभिन्न दलों की विचारधारा से जुड़े हैं। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें इन राजनीतिक दलों में सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका भी मिल जाती है। प्रदेश में तकरीबन 2.5 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। जिनमें सबसे अधिक तादाद शिक्षकों की है। शिक्षक तकरीबन 60 हजार, निगम व निकाय कर्मी 55 हजार, पेंशनर 70 हजार, उपनल कर्मी 22 हजार, होमगार्ड छह हजार, पीआरडी कर्मी छह हजार, संविदा कर्मी पांच हजार के करीब हैं।

कुछ यूं लिखकर कर रहे हैं जागरूक

क्यों चाहते हैं ओल्ड पेंशन स्कीम
कर्मचारी नेताओं का कहना है कि पुरानी पेंशन का लाभ नहीं मिलने से सेवानिवृत्ति के बाद कर्मियों के हाथ खाली रह रहा है। नई पेंशन स्कीम यानि एनपीएस के तहत उन्हें जो पैसा दिया जा रहा है, उससे उनका घर चलाना मुश्किल हो गया है।

पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र रावत ने भेजा था केन्द्र को पत्र
उत्तराखंड सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए 2005 के बाद नियुक्त हुए सभी शिक्षक कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना के दायरे में लाने की सिफारिश की थी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस संदर्भ में केंद्र सरकार को पत्र भी भेज दिया था।

कांग्रेस ने विधानसभा में उठाया था पिछले दिनों मुदृदा
विधानसभा के पिछले सत्र में कांग्रेस विधायकों ने नए कर्मचारियों की पुरानी पेंशन का लाभ देने का मुद्दा उठाया था। लेकिन जब उनका घोषणा पत्र आया उसमें ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने जैसी कोई बात सामने नहीं आई।

राज्य इसे केन्द्र का विषय बताकर पल्ला झाड़ते रहे
नई पेंशन योजना को लेकर देश के विभिन्न राज्यों समेत उत्तराखंड में भी विरोध हो रहा है। पुरानी पेंशन बहाली की मांग लगातार की जा रही है। राज्य इसे केन्द्र का विषय बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश भी करता रहा है।

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