



ताल-तलैयों से राजहंस गंगा के तट मिस्सरपुर पहुंचे
22 प्रवासी पक्षियों की भी गंगा तट पर है मौजूदगी
उत्तराखंड आने वाले राजहंस में कजाकिस्तान से अधिक
दैनिक समाचार, हरिद्वार: देश के विभिन्न ताल-तलैयों से अब राजहंस अपने स्वदेश वापसी के दौरान हरिद्वार के गंगा तटों पर पहुंच गए हैं। अबकी राजहंस की तादाद गंगा के तटों पर बढ़ी है। करीब 100 से 120 राजहंस पहुंचे हैं। फिलवक्त 22 प्रवासी पक्षियों की प्रजातियां भी गंगा के तट पर कलरव कर रहे हैं। पक्षी वैज्ञानिक लगातार निगाह रखे हुए हैं। पक्षियों को लेकर कई रहस्यों से पर्दा उठाने को लेकर वैज्ञानिकों का अध्यधन भी जारी है।
हरिद्वार के गंगा घाट पर स्वदेश वापसी से पहले राजहंस पहुंच चुके हैं। मिस्सरपुर गंगा घाट में राजहंस का एक बड़ा फ्लाक अपनी स्वदेश वापसी के लिए पहुँचा है। इस फ्लाक में करीब 100 से 120 राजहंस है। ये सभी मार्च मध्य तक पलायन करते रहेंगे। भारत में मंगोलिया, कजाकिस्तान, चीन, नेपाल एवं भूटान से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं को पार कर राजहंस आते हैं। उत्तराखंड में आने वाले राजहंस मुख्यतः कजाकिस्तान से आते हैं। प्रोफ़ेसर भट्ट की शोध टीम के छात्र आशीष कुमार आर्य ने बताया कि राजहंस पहली बार इतनी बड़ी तादाद में हरिद्वार के गंगा तटों पर पहुंचा है। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के एमेरिटस प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश भट्ट ने बताया कि पलायन करना पक्षियों की विवशता है। शीतकाल में पक्षियों के भारत आने के कारण अधिक स्पष्ट हैं। लगभग 40 डिग्री उत्तरी अक्षांश से ऊपर जितने भी शीत प्रदेश हैं। वहाँ शीतकाल में प्राय: 5 से 6 माह तक बर्फ जमी रहती है। दिन का प्रकाश सिर्फ 5 से 7 घंटे रहता है। इस प्रतिकूल मौसम में पक्षियों को वहां खाने-पीने में काफी दिक्कतें होती हैं। उनका प्राकृतिक आवास बर्फ गिरने से बुरी तरह प्रभावित होता है। जिससे पक्षियों के पास पलायन के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं होता। यह पलायन इनके शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं मे मौसमी परिवर्तन के असर से सम्भव हो पाता है। प्रोफेसर भट्ट ने बताया कि वापसी के कारणों में मार्च में तापमान व दिनमान का बढ़ना प्रमुख है। जैविक घड़ी पक्षियों के मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस क्षेत्र में स्थित बताई जाती है। जो अनेक प्रकार से पक्षियों के व्यवहार एवं प्रवास को नियंत्रित करती है। प्रोफेसर भट्ट ने बताया कि अधिकांश पक्षी सेंट्रल फ्लाईवे के माध्यम से भारत पहुंचते हैं और शीत प्रवास बिताने के बाद पुनः प्रजनन के लिए मध्य एवं उत्तरी एशिया के अपने अपने देशों में चले जाते हैं। प्रोफ़ेसर भट्ट की टीम में आशीष आर्य, रेखा, पारुल, एवं शिप्रा आदि शोधार्थी कार्य कर रहे हैं।

होमोग्लोबिन की संरचना में परिवर्तन कर आक्सीजन की करते हैं पूर्ति
वैज्ञानिक डॉ विनय सेठी ने बताया कि यह कौतूहल का विषय है कि यह पक्षी हिमालय की ऊंचाई, जहाँ ऑक्सीजन की उपलब्धता भी काफी कम होती है, उस क्षेत्र को सफलतापूर्वक पार करके हिंदुस्तान की सरजमी पर अपने शीतकालीन प्रवास पर आता है। डॉ सेठी के अनुसार पर्वत श्रृंखलाओं को पार करते समय यह पक्षी अपने हीमोग्लोबिन की संरचना में परिवर्तन कर ऑक्सीजन की मांग को कम कर लेता है।

8600 फीट की ऊंचाई के हिमालयी क्षेत्रों को पार करके पहुंचते हैं भारतीय उपमहाद्वीप
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जंतु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के एमेरिटस प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश भट्ट की टीम ने बताया कि यह पक्षी लगभग 8600 फीट की ऊंचाई के हिमालयी क्षेत्रों को पार कर शीतकाल प्रवास के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में आते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि राजहंस नामक पक्षी को कई दफा एवरेस्ट की ऊंचाई पर भी उड़ते देखा गया है।