शिक्षाविद और समाजसेवी विनोद कुकरेती का निधन कोटद्वार में अंतिम विदाई, हर आंख हुई नम, देश ही नहीं विदेश से भी सोशल मीडिया के जरिए हजारों ने अर्पित किए श्रद्धासुमन

हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट में सोमवार की रात में ली अंतिम सांस
ग्वील गांव के मूल निवासी शिक्षाविद ने कोटद्वार में बनाया था आशियाना
समाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने दी श्मशान घाट पर अंतिम विदाई

दैनिक समाचार, हरिद्वार/देहरादून/ कोटद्वार: शिक्षाविद और समाजसेवी विनोद कुकरेती का बीती रात हिमालयन जौलीग्रांट अस्पताल में किडनी और लीवर की बीमारी के कारण निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मंगलवार को कोटद्वार में किया गया। शिक्षाविद के निधन की खबर सुनकर उनके आवास पर श्रद्धासुमन अर्पित करने वालों का तांता लगा रहा।
कोटद्वार के ग्वील निवास लोवर कालाबड़ में रहने वाले और मूल पौड़ी गढ़वाल जिले के ग्राम ग्वील निवासी अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य विनोद कुकरेती का सोमवार की रात करीब 12 बजे हिमालयन अस्पताल जौलीग्रंट में निधन हो गया। 73 वर्षीय विनोद कुकरेती 11 फरवरी को जौलीग्रांट में भर्ती हुए थे। चिकित्सक लगातार उन्हें रिकवर करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उनकी हालत दिनों दिन बिगड़ती चली गई। वे कुछ दिनों से वेंटीलेटर पर थे।

सोमवार की रात करीब 12 बजे उन्होंने दुनिया को अलविंदा कह दिया। दिवंगत विनोद कुकरेती नागरिक मंच, वरिष्ठ नागरिक संगठन सहित कई संगठनों से जुड़े रहे। सामाजिक जन सरोकार के मुदृदों को वे कई मंचों पर उठाते रहे हैं। दिवंगत प्रधानाचार्य और शिक्षाविद के निधन की जैसे ही खबर ​कोटद्वार, हरिद्वार, देहरादून, टनकपुर, लखनऊ , दिल्ली, गुड़गांव, भोपाल, पंजाब सहित देश के कई शहरों तक सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंची, हजारों की तादाद में लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कोटद्वार में उनका पार्थिव शरीर पहुंचते सैकड़ों की तादाद में उनके जानने और चाहने वाले आवास पर पहुंचे और नम आंखों से श्रद्धासुमन प्रकट किया। कोटद्वार के मुक्ति धाम में दोपहर बाद शिक्षाविद दिवंगत विनोद कुकरेती के पुत्र अनुराग, अजिताभ और भाईयों ने मुखाग्नि दी। इस दौरान शमशान घाट पर आंखें सभी की नम रही। नागरिक और वरिष्ठ नागरिक संगठन से जुड़े लोग बड़ी तादाद में अंतिम विदाई देने पहुंचे थे। बताते चलें कि शिक्षाविद और प्रधानाचार्य दिवंगत विनोद कुकरेती लेखन का कार्य भी करते थे। कई अखबारों में उनके आर्टिकल छप चुके हैं। वे जहां-जहां भी तैनात रहे, वहां के अनुभवों को लेकर किताब भी लिखी थी। जिसे काफी सराहा गया। वे अपने मूल निवास को छोड़ चुके परिवारों और नये जनरेशन को जोड़ने को लेकर भी प्रयासरत रहे।

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