कुंभ में बने 200 करोड़ का ‘आस्था पथ’ न हेरीटेज बन सका, न मील का पत्थर, अब अपने हाल पर ले रहा ‘सिसकियां’, आखिर कौन है जिम्मेदार

कुंभ की दिव्यता और भव्यता को चार चांद लगाने को बनाया गया था ‘आस्था पथ’
एक किलोमीटर ‘आस्था पथ’ पर झांकने और चिंता करने वाला कोई अफसर नहीं
बड़ा सवाल, करोड़ों से बनने वाली योजनाओं के मेंटेनेंस को तय क्यों नहीं होती जिम्मेदारी

BY NAVEEN PANDEY
दैनिक समाचार, देहरादून/हरिद्वार: कुंभ 2021 की ‘दिव्यता’ और ‘भव्यता’ को चार चांद लगाने और पर्यटकों को गंगा के तट पर शांत वातावरण में ‘आस्था पथ’ पर सैकड़ों करोड़ खर्च किए गए। पर्यटकों को गंगा संग सेल्फी लेने, मॉर्निंग वॉक, योग और ध्यान का स्थल बनाकर मूर्त रूप दिया गया था। धर्मनगरी में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ‘आस्था पथ’ मील का पत्थर भी माना गया। लेकिन कुंभ के नाम पर करोड़ों की रकम बहाने वाले अफसरों ने ये नहीं सोचा कि ‘आस्था पथ’ की ये खूबसूरती मेंटेनेंस कैसे रहेगी। ना कोई सोच, ना कोई दूरदर्शिता। नतीजा, ‘आस्था पथ’ गंदगी से बीमार हो चला है। कोई इसकी सुध लेने वाला नहीं है। करोड़ों के वारे-न्यारे हो गए। कुंभ हो गया, अब ‘आस्था पथ’ का एक लंबा हिस्सा बदहाली पर सिसक रहा है।

PHOTO: रिवर फ्रंट के आस्था पथ पर घाट की सीढ़ियां टूटी हुई।


कुंभ के दौरान रिवर फ्रंट डवलपमेंट योजना के तहत गंगा किनारे पड़ी जमीन पर करीब एक किलोमीटर तक कुंभ मेला बजट से ‘आस्था पथ’ का निर्माण किया गया। पंतद्वीप पार्किंग से लेकर चंडीघाट पुल तक करीब एक किलोमीटर का यह ‘आस्था पथ’ बनाया गया। खूब बड़े दावे और वायदे उन दिनों किए गए थे कि ये ‘आस्था पथ’ हरिद्वार के लिए मिसाल बनेगा। ‘हेरीटेज’ के तौर पर लोग याद रखेंगे और न जाने कितने सुनहरी बातें। लेकिन ‘आस्था पथ’ से विमुख हुए अफसरों की सोच से ये ‘सिसकियां’ ले रहा है। सीढ़ियां टूट चुकी हैं। गंदगी फैली हुई है। ऐसा लगता है महीनों से कोई अफसर या जिम्मेदार झांकने तक नहीं आएं। कुंभ बजट से 2021 में सिंचाई विभाग ने आस्था पथ, रामायण दर्शन, सेंड गार्डेन, सत्संग भवन, योग स्थल, दिगदर्शन, सूर्यदर्शन, लीला दर्शन का निर्माण कराया था।

PHOTO : रिवर फ्रंट के आस्था पथ पर घाटों का ये है हाल।

सोच तो अच्छी थी लेकिन ​नीयत पर शक
जहां ‘आस्था पथ’ बनाया गया है। वहां पर पहले अतिक्रमण हुआ करता था। प्रशासन की ओर से अतिक्रमण को कुंभ 2021 के आयोजन के लिए हटवाया गया। अतिक्रमण से मुक्ति मिली। कुंभ के दौरान क्षेत्र का नजारा भी बदल गया। लेकिन कुंभ बीतने के बाद ‘आस्था पथ’ आस्था का केन्द्र नहीं रह गया है। 200 करोड़ ‘आस्था पथ’ की पूरी योजना पर खर्च किया गया था।

PHOTO : कुछ यूं दिखता था कुंभ के दौरान आस्था पथ।

स्थानीय लोगों ने दैनिक समाचार से कही ये बात
सरकार ने कुंभ मेले के दौरान सैकड़ों करोड़ खर्च किए हैं। जिसका इस्तेमाल हरिद्वार शहर के विकास में किया जा सकता था। लेकिन, आस्था पथ घाट पर पैसा बर्बाद किया गया। यह देखकर दुख हुआ कि हमारे शहर में इतनी कांवड़ियों और तीर्थयात्रियों के आने के साथ वहाँ कोई इंतजाम नहीं है। घाटों पर चारों तरफ बालू जमा और गंदगी है। नगर निगम या जो भी प्रभारी हो, उसे कम से कम घाटों की सफाई और रखरखाव करना चाहिए और यदि वे सक्षम नहीं हैं तो उन्हें उनकी देखभाल के लिए किसी भी निजी संस्थान को सौंप देना चाहिए। ताकि वहां बच्चे, बुजुर्ग जा सके। जिस मकसद से आस्था पथ बनाया गया। वह साकार हो सके। हालात देखकर प्रशासन और राजनेताओं को शर्म आनी चाहिए। वास्तव में शर्मनाक बात है कि उन्होंने अपनी जेब के लिए पैसा बर्बाद कर दिया। सरकार और प्रशासन को इतने बड़े बजट से किसी चीज को बनाने से पहले ये भी तय कर लेना चाहिए कि उसका रखरखाव कैसे और किस विभाग और संस्था से कराई जाएगी ताकि करोड़ों की रकम बर्बाद नहीं हो सके।

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