जातीय समीकरण और किसान आंदोलन के गणित को सुलझा नहीं सके धामी

दोनों मुख्य वजहों से हुई मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हार
थारु मतदाताओं की ओर बहुत ध्यान नहीं दे पाए सीएम
थारु मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर डाले वोट

नवीन पाण्डेय, देहरादून: भाजपा ने भले ही प्रदेश में बहुमत हासिल कर ली हो लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हार चिंता का विषय है। सियासत के जानकार बताते हैं कि किसान आंदोलन और जातीय समीकरण को नहीं समझ पाने में चूक हुई है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा सीट से हार गए हैं। इसके पीछे सियासत के जानकार अपना आंकलन लगा रहे हैं। जातीय समीकरण को वह मुख्य वजह बता रहे हैं। उनकी मानें तो उत्तराखंड के तराई में किसान आंदोलन का व्यापक असर देखने को मिला। रुद्रपुर, काशीपुर और खटीमा आदि क्षेत्रों से भारी संख्या में आंदोलन कर रहे किसानों ने दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसपर पर भी किसान सरकार से काफी खफा नजर आ रहे थे।


जातीय समीकरणों की बात करें तो खटीमा में पर्वतीय मतदता के अलावा थारू मतदाताओं की भारी संख्या है। थारू मतदाताओं ने 2012 और 2017 के विधानसभा में अपने ही वर्ग के नेता रमेश राणा के पक्ष में जमकर वोटिंग की थी। लेकिन 2022 के चुनाव में यह वोट कांग्रेस के पक्ष में चला गया और सीएम धामी हार गए। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने छह माह के अपने कार्यकाल में खटीमा में कई कार्यों को तेजी दी। कई घोषणाएं भी की लेकिन वो सब उनकी जीत को तब्दील नहीं कर सके। मुख्यमंत्री ने चकरपुर में स्टेडियम का शिलान्यास, पूर्व सैनिकों के लिए सीएसडी कैंटीन, जनजाति के विद्यार्थियों के लिए एकलव्य विद्यालय, एनएच 125 बाईपास का निर्माण,रोडवेज बस स्टेशन का लोकार्पण काम किया। बावजूद खटीमा की जनता ने उन्हें नकार दिया।

सीएम पुष्कर सिंह धामी की हार की मुख्य वजहें, किसान आंदोलन, जातीय समीकरण में फेल, चुनाव में नामांकन के बाद चार बार ही आए खटीमा, दूसरी विधानसभा सीटों पर फोकस, प्रचार को प्रदेशभर में भ्रमण

Leave a Comment

error: Content is protected !!